आप कल्पनाशीलता बनाए रखें यही कला आपको जीवित रखेगीः मदनमोहन दानिश
आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर में ‘गांधी, ग्रामोफोन और रेडियो‘ विषय पर कार्यशाला आयोजित
- गांधी जी ने ग्रामोफोन को एक डिजिटलचर्खा के तौर पर उपयोग किया थाः ब्यूरोक्रेट अखिलेश झा
- वक्ताओं से सीखना चाहिए कि हम अपने जुनून को किस तरह पेशा बनाएंः वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश उपाध्याय
- छात्र-छात्राओं ने किया वक्ताओं से सवाल-जवाब
ग्वालियर । आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा विश्व रेडियो दिवस के उपलक्ष्य में ‘गांधी, ग्रामोफोन और रेडियो‘ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रूप में प्रख्यात शायर और आकाशवाणी के पूर्व प्रसारक मदनमोहन दानिश, ब्यूरोक्रेट अखिलेश झा शामिल हुए। वहीं अध्यक्षता आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश उपाध्याय ने की। इस अवसर पर आईटीएम पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के अध्यक्ष और कार्यशाला संयोजक डाॅ. मनीष जैसल के अलावा विभिन्न विभागों के प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद रहे। वहीं कार्यशाला का संचालन छात्र मयंक त्रिपाठी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन छात्रा वंशिका चैहान ने दिया।
आप कल्पनाशीलता बनाए रखें यही कला आपको जीवित रखेगीः मदनमोहन दानिश
आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा विश्व रेडियो दिवस के उपलक्ष्य में ‘गांधी, ग्रामोफोन और रेडियो‘ विषय पर आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि प्रख्यात शायर और आकाशवाणी के पूर्व प्रसारक मदनमोहन दानिश ने कहा कि जो चीज हमारे लिए उपयोगी हो, महत्वपूर्ण हो तो वह हमेशा प्रासंगिक रहेगी। रेडियो की प्रासंगिकता को समझने के लिए हमें अपनी सीमा के बाहर भी देखना होगा। हमारा जीवन सिर्फ शहर में नहीं है, आप सोचिए एक सैनिक जो दूर किसी दूभर जगह पर तैनात है, एक किसान जिसके खेत के पास नेटवर्क नहीं आता हो, कहीं दूर पहाड़ों पर या फिर समुद्र तट पर कोई मछुआरों की टोली हो, इन सब के जीवन में रेडियो आज भी उपयोगी है। और जो उपयोगी है, वही प्रासांगिक है। उन्होंने कहा कि रेडियो सिर्फ अपनी आवाज़ से दृश्य पैदा करता है और इसको सुनते वक्त श्रोताओं की कल्पनाशीलता के सारे आयाम खुले रहते हैं। स्क्रीन आपकी रचनात्मकता को थामता है, वहीं रेडियो सुनते वक्त जो आवाज सुनाई देती है, उससे हम अपनी कल्पनाशीलता से तस्वीर बनाते रहते है। उन्होंने छात्र-छात्राओं और युवाओं से आग्रह किया कि आप कल्पनाशीलता बनाए रखें यही कला आपको जीवित रखेगी।
गांधी जी ने ग्रामोफोन को एक डिजिटलचर्खा के तौर पर उपयोग किया थाः ब्यूरोक्रेट अखिलेश झा
आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला में द्वितीय मुख्य अतिथि ब्यूरोक्रेट अखिलेश झा ने गांधी के 1931 की ग्रामोफोन की पहली रिकाॅर्डिंग सुनाकर संवाद शुरू किया। उन्होंने कहा कि गांधी बहुत बड़े वैज्ञानिक थे और उन्होंने ग्रामोफोन को एक डिजिटलचर्खा के तौर पर उपयोग किया था। इस रिकॉर्डिंग की 5 लाख प्रतिया बिकी थीं और उससे आए पैसों को उन्होंने स्वतंत्रता अभियान में प्रयोग किया, इससे गांधी जी की बाजार की समझ का पता चलता है कि वो उपभोक्ता और बाजार को कितने बेहतर तरीके से जानते थे। उन्होंने मैनुअल ग्रामोफोन का उपयोग करना भी छात्र-छात्राओं को सिखाया एवं उसमें गांधी जी से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण रिकॉर्डिंग्स भी सुनाई। उन्होंने गौहर जान की 1901 की पहली भारतीय ग्रामोफोन रिकाॅर्डिंग ‘ठुमरी’ सुना कर अपने वक्तव्य का समापन किया।
वक्ताओं से सीखना चाहिए कि हम अपने जुनून को किस तरह पेशा बनाएंः वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश उपाध्याय
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला की की अध्यक्षता कर रहे आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश उपाध्याय ने आईटीएम पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के रचनात्मक कार्यक्रम छात्र-छात्राओं में मूल्य प्रणाली को विकसित करने में सहायक होते हैं। उन्होंने कहा की हमें वक्ताओं से ये सीखना चाहिए कि कैसे हम अपने जुनून को पेशा बनाए। जैसी ये कार्यशाला हुई है हम हर क्लास लेक्चर को ऐसा ही बनाना चाहते हैं।
कार्यशाला में आईटीएम जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष डाॅ. मनीष जैसल ने भी रेडियो की प्रासंगिकता पर रौशनी डालते हुए अपने विचार व्यक्त किए।
छात्र-छात्राओं ने किया वक्ताओं से सवाल-जवाब
आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला के दौरान छात्र-छात्राओं ने अतिथियों से ‘गांधी, ग्रामोफोन और रेडियो‘ के क्षेत्र में वर्तमान में किस तरह अपना कॅरियर बना सकते हैं विषय पर सवाल-जवाब किए। इस पर मुख्य अतिथि प्रख्यात शायर और आकाशवाणी के पूर्व प्रसारक मदनमोहन दानिश, ब्यूरोक्रेट अखिलेश झा ने जवाब देकर छात्र-छात्राओं की जिज्ञासाओं को शांत किया।