भारतीय ज्ञान परंपरा से ही वर्तमान समस्याएं सुलझ सकती है - अतुल कोठारी
देश के प्रसिद्ध शिक्षाविद अतुल कोठारी, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव, शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय सह संयोजक और भारतीय भाषा मंच के संरक्षक हैं । वह पिछले 10 वर्ष से शिक्षा बचाओ आंदोलन के जरिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ,पाठ्यपुस्तकों में विकृतियां और विसंगतियों को दूर करने के लिए कार्य करते रहे हैं ।
कोठारी 2004 में, देश में शिक्षा बचाओ आंदोलन की शुरुआत करने वालों में से एक है शिक्षा बचाओ आंदोलन के अस्थाई रूप से शुरू हुए, आंदोलन को स्थाई रूप देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है इन सब संस्कृतियों, संस्थाओं और मंचों के माध्यम से भी वह भारतीय भाषाओं का विषय निरंतर उठाते रहे हैं । कोठारी शिक्षा उत्थान पत्रिका के संपादक हैं जिसके माध्यम से वे शिक्षा और शिक्षा में भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए प्रयास करते रहे हैं । हमारी विशेष संवाददाता वंदना विश्वकर्मा ने शिक्षा में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और कौशल के विकास को रोजगार परख बनाने, नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को जागृत करने , धर्म और अहिंसा के वास्तविक स्वरूप , देश प्रेम की भावना को मजबूत करने आदि विषयों पर उनसे विस्तार पूर्वक चर्चा की।
प्रश्न - मानव का प्रकृति में क्या स्थान है और प्रकृति का मानव के साथ क्या संबंध है ? शैक्षिक पाठ्यक्रम में यह विषय क्यों नहीं उपलब्ध कराया जाता है?
कोठारी - इसकी वजह यह रही है कि हम भारतीय ज्ञान परंपरा से भटक गए थे , लेकिन पिछले 10 साल के कड़े श्रम और प्रयास के बाद उक्त विषय को समझने का कार्य अब शुरू हो गया है आईआईटी खड़कपुर में भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र स्थापित हो चुका है तथा कई अन्य स्थानों पर भी इस तरह के केंद्र स्थापित करने की योजना है। पूर्व प्राथमिक शिक्षा के 5 वर्ष के पाठ्यक्रम में पंचकोश को जोड़ा गया है और टीचर एजुकेशन सिलेबस में भी पंच कोष को जोड़ा जा रहा है। इसके साथ ही भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करने का काम भी शुरू हो चुका है । 12 भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार हो गए हैं हालांकि नई शिक्षा नीति को पूरी तरह क्रियान्वित करने में कुछ समय लगेगा अभी मध्य प्रदेश सरकार से भी बातचीत हुई है और वह राज्य में प्रमुख स्थानों पर उच्च शिक्षा स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा शुरू करने के लिए तैयार हो गई है ।मध्य प्रदेश में मेडिकल की पुस्तक हिंदी में तैयार हो रही हैं l
प्रश्न - धर्म मुक्ति का साधन है लेकिन अब यही जहर बन गया है इसे विष रहित कैसे किया जाए ?
कोठारी - यह सब गड़बड़ी सेकुलरिज्म शब्द का गलत अर्थ करने के कारण हुई । संविधान में सेकुलरिज्म का अनुवाद पंथनिरपेक्ष किया गया था लेकिन इसे धर्मनिरपेक्ष बना दिया गया । हमारे शास्त्रों में धर्म, कर्तव्य और उच्च भावनाओं के अर्थ में है जैसे छात्र- धर्म , ब्राह्मण - धर्म आदि तथा दया ,उदारता, सहिष्णुता, नम्रता ,करुणा आदि भावों का संबंध भी धर्म से है जबकि मजहब और पंथ धर्म से भिन्न अर्थ रखते हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि मजहब और पांच में धर्म समाहित नहीं है।
प्रश्न - यदि धर्म कर्तव्य है तो उदाहरण के रूप में पाकिस्तान में भारतीय सेवा द्वारा बम विस्फोट करने की स्थिति में हमें उसका करतल ध्वनि से स्वागत करना चाहिए लेकिन मानवता यानी धर्म के आधार पर यह बात यथोचित प्रतीत नहीं होती ।
कोठारी - सत्य बोलना धर्म के अंतर्गत है लेकिन कभी ऐसा मौका भी आ जाता है जब किसी व्यक्ति की रक्षा करने या उसे बचाने के लिए सत्य बोलना पड़ता है इसका मतलब यह नहीं कि हम धर्म के रास्ते से हट गए धर्म सत्य से भी ऊपर है उदाहरण के लिए भारतीय सेवा का जवान देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात रहता है यदि वह सोचने लगे कि वह पाकिस्तान के प्रति हिंसा कर रहा है तो यह बात गलत है देश की रक्षा करना उसका धर्म यानी कर्तव्य है ।सामान्य हिंदू का यह स्वभाव है कि वह सोचता है हिंसा नहीं करनी चाहिए लेकिन कभी-कभी अहिंसा की रक्षा के लिए हिंसा करनी पड़ती है आज हमें धर्म की रक्षा के लिए कड़े निर्णय करने हैं लेकिन आगे स्थिति और खराब होती है तो और कड़े निर्णय लेने पड़ेंगे अन्यथा हिंसक प्रवृत्ति के लोग हिंसा का साम्राज्य बढ़ाते जाएंगे । हिंदू कभी हिंसावादी नहीं रहा उसने पारसियों और यहूदियों को यहां रहने का स्थान दिया जिन्हें दुनिया में कहीं भी जगह नहीं दी गई । जब भारत सरकार का इजराइल से संबंध नहीं था तब यहूदी कहते थे कि हम भारत के नहीं है वास्तव में चरित्र का संकट वैश्विक रूप से बढ़ रहा है इसीलिए नैतिक मूल्यों का भी पतन हो रहा है। दुनिया बढ़ रही है और अच्छे संस्कार कम हो रहे हैं इसलिए नैतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करना बहुत जरूरी हो गया है। हम इसी काम में लगे हुए हैं ।
प्रश्न - ऐसी बातें हो रही है कि मुसलमानो के मदरसा को हटाया जाएगा । क्या यह सही है ?
कोठारी - हमारा मानना है कि गैर कानूनी काम नहीं होने चाहिए ।
मदरसा में आधुनिक शिक्षा दी जानी चाहिए । वहां भी राष्ट्रगान होना चाहिए ।
प्रश्न - समाज में उपभोक्तावाद तेजी से बढ़ रहा है। जिसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है । इस दिशा में आप क्या काम कर रहे हैं ?
कोठारी - दुनिया की तमाम समस्याओं में यह भी एक समस्या है हमारी शिक्षा में संयम की शिक्षा भी दी जाती है । जितनी जरूरत है उपभोग उतना ही होना चाहिए । इसमें संतुलन आवश्यक है जहां तक बच्चों में उपभोक्तावाद बढ़ने की बात है इसमें उनका उतना दोष नहीं है जितना हमारा है । बच्चों में बचत की आदत डालनी होगी और उनके हाथों कुछ धनराशी दान करवानी चाहिए ।इससे बच्चे जब बड़े होंगे तो उनमें चंद पैसों के लिए लड़ाई नहीं होगी और उनमें , क्रेडिट कार्ड और कर्ज लेकर घर का सामान खरीदने की परंपरा नहीं आएगी । वास्तव में हमें उपयोग कम नहीं करना है बल्कि दुरुपयोग कम करना है। इसी दिशा में अगले साल से कुछ विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए बैंकिंग प्रणाली शुरू करने की हमारी योजना है।
लेखिका वंदना विश्वकर्मा ( सूरत ) स्वतंत्र पत्रकार है समय समय पर अपने विचार प्रेषित करती रहीं हैं।