एक स्वस्थ प्रजातंत्र में सभी आम चुनाव देश की पृथक दिशा निर्धारण के लिए विशिष्ट महत्व के होते हैं। अभी संपन्न हुए लोक सभा चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम मोदी और बीजेपी के अहंकार को सीमित करना तथा एक पार्टी सरकार का अंत करना है। मोदी के करिश्मे की चमक कम हुई है और इसे चमकाने के लिए उन्हें कुछ बड़े क़दम उठाने होंगे। इस चुनाव ने न केवल संसद का रुप बदल दिया है, अपितु देश की राजनीति और शासन तंत्र को नया मोड़ दिया है। देश में एक शक्तिशाली और मुख़र विपक्ष की आवश्यकता पूरी हो गई है, जो सरकार को सतत चौकन्ना रखने में समर्थ होगा तथा संवैधानिक एवं वैधानिक संस्थाओं को मर्यादित रखेगा। विपक्ष द्वारा नई सरकार को अपने एजेंडे के अनुसार क़ानून बनाने में बहुत सी बाधाएँ डाली जा सकती हैं।
विपक्षी गठबंधन के मुख्य दल कांग्रेस ने अपनी शक्ति बढ़ायी है। उसे हिंदी क्षेत्र में सीटें प्राप्त हुई हैं। उत्तर प्रदेश में मिली 6 सीटें उसके लिए ऊसर में नई घास के समान है। राहुल गांधी की आवाज़ को बल मिलेगा। लेकिन सबसे बड़ा चमत्कार अखिलेश यादव द्वारा किया गया है जिन्होंने मोदी के अहंकार से उपजे 400 पार के नारे को मोदी द्वारा संविधान बदल कर दलित और ओबीसी का आरक्षण समाप्त करने की योजना बता कर सफल प्रचार किया। भाजपा का राम मंदिर और हिन्दू कार्ड फीका पड़ गया। हिंदू धर्म अनेक जातियों और उपजातियों में बँटा हुआ है और इनके बीच विभाजन को बढ़ावा देना बहुत आसान होता है। बीजेपी समेत सभी राजनीतिक पार्टियां जातियों के समीकरण को अपने पक्ष में करना चाहती है। इस काम में पूर्णकालिक जाति की राजनीति करने वाले अखिलेश यादव को विशेष सफलता मिली है। भारतीय मतदाताओं को परिवारवाद से भी कोई परहेज़ नहीं रहा है। यद्यपि तेजस्वी यादव कुछ विशेष नहीं कर सके परन्तु ममता बैनर्जी, स्टालिन, ऊधव ठाकरे और शरद पवार जैसे परिवारवादी क्षत्रप पुनः शक्तिशाली होकर उभरे हैं। केजरीवाल को सफलता नहीं मिली हैं। कुल मिलाकर अपने अच्छे प्रदर्शन के बावजूद इंडिया गठबंधन फ़िलहाल सत्ता प्राप्त नहीं कर सका है।
इस बार 63 सीट गंवाने के बाद भी 240 सीटें लेकर बीजेपी अभी भी सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है। उसके एनडीए गठबंधन को नेहरू के रिकॉर्ड के बराबर तीसरी बार सरकार बनाने का अवसर मिल रहा है। अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए मोदी ने उनसे कहा कि पूरे इंडिया गठबंधन से ज़्यादा सीटें बीजेपी को मिली हैं। बीजेपी के लिए यह संतोष की बात है कि आज उसका विस्तार भारत की सभी दिशाओं में हो चुका है। उड़ीसा में उसे नवीन पटनायक को हटाने में बड़ी सफलता मिली है और पहली बार उस राज्य में वह सरकार बनाने जा रही है।बीजेपी को निकट भविष्य में अपनी साख बचाने के लिए महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधान सभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना होग। उसे उत्तर भारत में अपनी सीटें खोने के कारणों की गंभीर समीक्षा करनी होगी। बीजेपी की आरएसएस पर निर्भरता बढ़ जाएगी।
चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार पहले से ही कठिन सौदेबाज़ी करने के आदी रहे हैं। इन्हें लेकर मोदी को चलना आसान नहीं होगा। उन्हें एक राष्ट्र एक चुनाव और सामान्य नागरिक संहिता आदि का सपना छोड़ना होगा। अब एनडीए के दूसरे घटक दलों के हस्तक्षेप के कारण प्रशासनिक तथा विधायिका के कार्य में व्यवधान आना स्वाभाविक है।अपने राजनीतिक जीवन में मोदी ने अनेक परिस्थितियों का सामना किया है और आशा की जा सकती है कि वे अपने व्यक्तित्व से नई परिस्थितियों से जूझने के लिए तत्पर रहेंगे। मोदी के तीसरी बार आने से देश को एक निरंतरता प्राप्त हुई है। उनके द्वारा किये गये सुधार और गुड गवर्नेंस के द्वारा देश में उच्च जीडीपी दर से विकास हुआ है। अब मोदी को लोकलुभावन योजनाओं के स्थान पर युवाओं की बेरोज़गारी और किसानों की समस्याओं को नई दृष्टि से हल करने की आवश्यकता है। नोट-लेखक एन के त्रिपाठी डीजीपी स्तर के अधिकारी रहे हैं वह समय समय पर अपने विचार प्रेषित करते रहे हैं।