विश्व रेडियो दिवस: बदलते परिवेश में आज भी प्रासंगिक है हमारा रेडियो


- शिक्षा एवं सूचना के क्षेत्र में कारगर रेडियो, एफएम  के माध्यम से मनोरंजन का भी माध्यम
(प्रदीप कुमार वर्मा)
वर्तमान में देश और दुनिया में इंटरनेट के चलते डिजिटल के दौर में खासी बढ़ोतरी हुई है। आज के इस दौर में इंटरनेट संचार एवं सूचना प्राप्ति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है। जिसके चलते टीवी,सिनेमा तथा वेब वर्ल्ड पर विभिन्न माध्यम शिक्षा, सूचना एवं मनोरंजन का जरिया बन गए हैं। इससे कई बार  ऐसा प्रतीत होता है कि रेडियो की आवाज इंटरनेट के शोर में दबकर रह जाएगी। लेकिन इसके उलट आज के दौर में चाहे पीएम मोदी के मन की बात हो, या फिर मनोरंजन और उपयोगी शैक्षिक प्रसारण, जिसके चलते रेडियो आज भी लोगों की खास पसंद है। यही वजह है कि देश और दुनिया के प्राचीन संचार माध्यमों में प्रमुख भूमिका निभाने वाला रेडियो आज भी सूचना, शिक्षा और मनोरंजन पहुंचाने के क्रम में एक प्रभावी एवं लोकप्रिय माध्यम के रूप में आज भी प्रासंगिक है।
          रेडियो के इतिहास पर गौर करें तो रेडियो के आविष्कारक मार्कोनी ने वर्ष 1895 में एक किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर स्थित स्रोत को वायरलेस मोर्स कोड संदेश भेजा। 1896 में उन्होंने इंग्लैंड में पहली "वायरलेस टेलीग्राफी" प्रणाली के लिए पेटेंट प्राप्त किया। विश्व का पहला रेडियो समाचार वर्ष 1916 में प्रसारित किया गया,जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के बारे में सूचना दी गई। इसके बाद वर्ष 1919 में रेडियो कॉरपोरेशन आफ अमेरिका और 21 दिसंबर 1922 को ईस्ट पीटर्स वर्ग में रेडियो ब्रॉडकास्टिंग की स्थापना की गई। अमेरिका के बाद ब्रिटेन में रेडियो क्रांति का उद्भव हुआ और 1922 में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कंपनी की स्थापना की गई। जिसका नामकरण बाद में 1 जनवरी 1927 को बीबीसी से हुआ जो आज तक प्रचलन में है। भारत में रेडियो के उद्भव की बात करें तो वर्ष 1926 में रेडियो ब्रॉडकास्टिंग कंपनी बनाई गई।
        इस कंपनी ने 13 सितंबर 1926 को प्रसारण करने का लाइसेंस प्राप्त किया और मुंबई तथा कोलकाता में डेढ़ किलो वाट के मीडियम वेव ट्रांसमीटर लगाए गए। रेडियो की विकास यात्रा में वर्ष 1927 को भारत में रेडियो के विकास प्रसारण के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इसी वर्ष 23 जुलाई को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने मुंबई स्टेशन का उद्घाटन किया और 16 तारीख को रेडियो कार्यक्रम के बारे में पहले जनरल द इंडियन रेडियो टाइम्स के प्रथम  प्रकाशन हुआ। इसके बाद वर्ष 1936 में 8 जून को इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो रख दिया गया और दिल्ली केंद्र से रेडियो के प्रसारण शुरू हुए। आजादी के बाद में भारत के प्रथम सूचना और प्रसारण मंत्री बने सरदार वल्लभभाई पटेल ने रेडियो प्रसारण के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। 
       आजादी के बाद स्वतंत्र भारत का पहला रेडियो स्टेशन 1 नवंबर 1947 को जालंधर में खोला गया तथा इस वर्ष 1 दिसंबर को जम्मू रेडियो केंद्र खोला गया। इसके बाद 1 जुलाई को श्रीनगर में मीडियम वेव रेडियो स्टेशन खोला गया इसके बाद 1948 तक कई स्टेशन खोले गए। इसके बाद में 3 अक्टूबर 1957 को ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर "आकाशवाणी" रख दिया गया और यह नाम 5 जनवरी 1958 से लागू किया गया। कालांतर में मार्च 1977 में जनता पार्टी की मिली जुली सरकार केंद्र में आई और तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवानी ने रेडियो ओर टेलीविजन के विकास के लिए एक कमेटी बनाकर उसका नाम "आकाश भारती" किया। इसके बाद में आकाश भारती विधेयक में सुधार करके उसे "प्रसार भारती" नाम दिया गया जो एक स्वायात संस्था के रूप में आज तक लागू है। 
             आज प्रसार भारती के अधीन आने वाली आकाशवाणी द्वारा स्थापित विभिन्न केंद्रों के माध्यम से शिक्षा, सूचना,खेल,चिकित्सा,कृषि एवं मनोरंजन सहित अन्य क्षेत्रों में न केवल समाचारों का प्रसारण हो रहा है। बल्कि कई वार्ताएं एवं साक्षात्कार भी आयोजित किया जा रहे हैं। जिनमें विषय विशेषज्ञों द्वारा भारत के साथ-साथ विदेशों में भी आमजन को महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। यही नहीं आकाशवाणी द्वारा विदेशी धरती पर भी अपने कई संवाददाताओं की नियुक्ति की गई है। जो विदेश की खबरों को भी संकलित करआकाशवाणी केंद्र भेज रहे हैं जहां से उनका प्रसारण किया जा रहा है।
         बदलते दौर में मनोरंजन के क्षेत्र में भी रेडियो एक प्रभावशाली माध्यम के रूप में उभरा है। बीते जमाने में जहां रेडियो पर बिनाका गीत माला सहित गीतों के फरमाइशी प्रोग्राम का प्रसारण होता था। वहीं, आज के दौर में एफएम रेडियो स्टेशनों के माध्यम से 24 घंटे गीत संगीत का प्रसारण किया जा रहा है। यह रेडियो प्रसारण का बढ़ता हुआ महत्व है कि न केवल घर,दफ्तर, खेत एवं खलियान में रेडियो के प्रसारणों को सुना जा सकता है। इसके साथ ही चलती हुई ट्रेन एवं बस तथा कार में भी रेडियो प्रसारण सुने जा रहे हैं। एफएम रेडियो के कई चैनलों में गीत संगीत का भी वर्गीकरण कर भजन, फिल्मी संगीत,पुराने गीत तथा खेलों की कमेंट्री भी की जा रही है। इसके साथ ही रेडियो के माध्यम से विज्ञापनों का प्रसारण भी किया जा रहा है,जो निर्माता एवं उपभोक्ताओं को एक उचित मंच प्रदान करता है। वहीं, खरीददार को भी रेडियो पर विज्ञापनों के माध्यम से उत्पाद के गुण दोष के बारे में आसानी से जानकारी मिल पाती है।
        आधुनिकता एवं इंटरनेट के बढ़ते चलन से शहरों में  लोग टेलीविजन तथा अन्य आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की ओर आकर्षित हुए हैं। लेकिन छोटे कस्बों के साथ गांव एवं ढाणियों में अभी भी रेडियो सुना जाता है। जिनके पास अक्षर ज्ञान नहीं है, वे अखबार नहीं पढ़ सकते। लेकिन रेडियो सुन सकते हैं। इसी प्रकार जो लोग अपनी दृष्टिहीनता के कारण न तो अखबार पढ़ सकते हैं न टेलीविजन देख सकते हैं। ऐसे लोगों का रेडियो ही साथी है। अपनी विशेषताओं के चलते ही रेडियो श्रोताओं को साथ लेकर चलता है। किचन में काम करती महिला, रात में पहरा देता चौकीदार, देश की  सीमा पर रखवाली करता जवान ओर आवागमन के दौरान बोरिंग यात्रा में मनोरंजन हो। रेडियो एक सच्चे साथी और हमसफर की तरह साथ निभाता है।
         कुल मिलाकर रेडियो की प्रासंगिकता के संबंध में फलसफा यही है कि आज के दौर में भले ही इंटरनेट का स्तर व प्रसार काफी बढ़ गया है, लेकिन शिक्षा और सूचना के माध्यम के रूप में  रेडियो की आवाज आज भी सुनाई देती है। कृषि एवं ग्रामीण परिवेश वाले भारत देश में रेडियो ऐसा माध्यम है, जो जन-जन तक अपनी व्यापक पहुंच के कारण ही लोकतंत्र की अवधारणा को साकार कर रहा है। समाज का सबसे अंतिम छोर पर बैठ व्यक्ति भी रेडियो पर अपनी पसंद ओर जरूरत की आवाज सुनकर सुख की अनुभूति करता है। अपनी व्यापक पहुंच तथा जन संप्रेषण के लोकप्रिय एवं सस्ते माध्यम के रूप में रेडियो की आवाज का जादू आज भी लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। जो ना केवल वर्तमान,बल्कि भविष्य में भी रेडियो की प्रासंगिकता को बरकरार रखेगा।
-लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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