मानव शरीर जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत एक प्रकार से बीमारियों का घर है। इस पूरी यात्रा में व्यक्ति को विभिन्न रोगों से बचाव उपचार के लिए कई चिकित्सा पद्धतियों का सहारा लेना पड़ता है। जहां आज के दौर में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति आधुनिक चिकित्सा पद्धति के रूप में चर्चित और मान्यता प्राप्त है। वहीं, विश्व में कई प्राचीन चिकित्सा पद्धति भी मौजूद है। यूनानी चिकित्सा एक ऐसी ही प्राचीन उपचार प्रणाली है। आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा पद्दति के जन्म से पहले यूनानी दवाएं दुनियाभर में काफी प्रचलित थीं। आज भी विश्व के कई हिस्सों में यूनानी चिकित्सा को एक महत्वपूर्ण इलाज के रूप में स्थान दिया गया है। बीमारियों का इलाज करने के साथ-साथ यूनानी चिकित्सा रोगों की रोकथाम करने और स्वास्थ्य में लगातार सुधार करने में भी काफी प्रभावी है। यही वजह है की यूनानी चिकित्सा को विश्व भर में असाध्य रोगों के लिए संजीवनी सरीखा उपयोगी माना जाता है।
यूनानी चिकित्सा पद्दति के अतीत पर गौर करें, तो 460 -377 ईसा पूर्व में यूनानी चिकित्सा विधि का पता चलता है। बुकरात (अंग्रेजी में हिप्पोक्रेट) नामक दार्शनिक को यूनानी चिकित्सा विधि का जन्मदाता माना जाता है। हिप्पोक्रेट ने मिश्र और मेसोपोटामिया यानी वर्तमान ईराक, शाम और तुर्की के दजला-फुरात नदियों के मघ्य की सभ्यता, संस्कृति और चिकित्सा पद्धति को नजदीक से देखा। उस समय की चिकित्सा व्यवस्था को पुन: जीवित करने का प्रयास किया। इनके बाद 129 से 200 ईस्वी में हकीम जालीनूस का जमाना आया। इन्हें अंग्रेजी में गेलन के नाम से भी जाना गया। हकीम जालीनूस ने प्राचीन यूनानी दर्शन और दवाईयों को पारदर्शिता से पहचान और परिचय दिया। हकीम जालीनूस के बाद जाबिर-इब-हयात और हकीम-इब-सीना का भी जिक्र आता है। यूनानी चिकित्सा प्रणाली ने ग्रीस देश में जन्म लिया था। लेकिन भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति की शुरूआत 10 वी शताब्दी से मानी जाती हैं। इसके बाद 1868 में भारत में जन्मे अजमल खान ने भारत में यूनानी चिकित्सा के विकास और विस्तार में अपना योगदान और यूनानी चिकित्सा में अपनी पहचान दी।
भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवित कर आधुनिक रूप देनें का श्रेय हकीम अजमल खान को जाता हैैं। हकीम अजमल खान के भागीरथी प्रयासों से ही दिल्ली में यूनानी चिकित्सा में पढा़ई हेतू "तिब्बतिया कालेज" की स्थापना हुई । यूनानी चिकित्सा पद्दति के विकास में हकीम अजमल खान के प्रयासो को मान्यता देते हुये भारत सरकार ने उनके जन्मदिवस 11 फरवरी को 'राष्ट्रीय यूनानी दिवस'के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। जिसकी शुरूआत सन 2016 से हुई थी। यूनानी चिकित्सा शास्त्रीय ज्ञान के अनुसार रोगों की रोकथाम करने और शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने वाली दवाएं बेहद जरूरी हैं। यदि सरल भाषा में कहा जाए तो यूनानी चिकित्सा में किसी रोग का इलाज करने के लिए मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता बढ़ाने और साथ ही लक्षणों को कम करने की दवाएं भी दी जाती हैं। वर्तमान समय में भारत, पाकिस्तान, पर्शिया और कई देशों में इस उपचार प्रणाली का इस्तेमाल किया जा रहा है। इतना ही नहीं साउथ अफ्रीका व इंगलैंड जैसे देशों में भी लोगों ने यूनानी चिकित्सा की तरफ रुख किया है।
यूनानी चिकित्सा में जीवाणु-रोधी और संक्रमण रोकने वाली दवाएं तैयार की गई हैं। जिनकी मदद से संक्रमण आदि का प्रभावी रूप से इलाज किया जाता है। इन दवाओं की मदद से सूजन व दर्द आदि को ठीक किया जाता है। वातावरण और बदलती जीवनशैली को देखते हुए हर यूनानी चिकित्सा प्रणाली में विभिन्न औषधिया मिलाकर दवाएं तैयार की गई, जिनकी मदद से पेट व आंत संबंधी सभी समस्याओं को ठीक किया जा सकता है। यूनानी दवाएं रक्त में शर्करा के स्तर को कम करती हैं, जिससे डायबिटीज के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही गठिया समेत जोड़ों व हड्डियों से संबंधित अन्य रोग जैसे सूजन, लालिमा व अन्य समस्याओं आदि को“वजा-उल-मुफ्फासिल” के नाम से जाना जाता है। यूनानी चिकित्सा प्रणाली की मदद से हृदय संबंधी विकारों का इलाज भी किया जाता है। फारसी हाकिम इब्न सिना ने अपनी किताब “अदविया-ए-कलबियाह” में 63 अलग-अलग प्रकार की यूनानी दवाओं का वर्णन किया है, जिनका उपयोग हृदय विकारों का इलाज करने के लिए किया जा सकता है।
राजकीय यूनानी चिकित्सक डॉ. महमूद अहमद ने बताया कि यूनानी चिकित्सा पद्धति में जटिल एवं असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। विशेष रूप से पेट रोग,गठिया,नपुंसकता,यौन रोग तथा मस्तिष्क के रोगों में यूनानी दवाएं काफी कारगर हैं। कई यूनानी दवाएं हैं, जो बच्चों में वयस्कों में होने वाली घरघराहट, श्वासनली में होने वाली सूजन, नाक रुकना, गले में दर्द व सांस संबंधी समस्याओं का प्रभावी रूप से इलाज करती हैं। यूनानी चिकित्सा पद्धति में गुर्दे की पथरी का इलाज करने के लिए कई यूनानी दवाएं तैयार की जा चुकी हैं, जिन्हें भारत में भी काफी इस्तेमाल किया जा रहा है। यूनानी चिकित्सा पद्दति में सोरायसिस व एक्जिमा आदि के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली यूनानी दवाएं त्वचा को नम रखती हैं। और साथ ही इनमें सूजन व लालिमा कम करने वाले गुण भी होते हैं। वहीं,यूनानी चिकित्सा प्रणाली में मस्तिष्क का इलाज करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अधिकतर यूनानी दवाएं भारतीय तेजपत्ता, केसर और इलायची से बनाई जाती हैं।
इसी प्रकार यौन समस्याओं का इलाज करने में पुरुषों व महिलाओं दोनों में यौन क्षमताओं को बढ़ाकर बांझपन व अन्य यौन समस्याओं का इलाज किया जाता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार यूनानी दवाओं में “विथान सोम्नीफेरा” नामक एक विशेष पौधे का इस्तेमाल किया जाता है, जो पुरुषों के वीर्य की गुणवत्ता को बढ़ाता है। साथ ही यूनानी चिकित्सा की यौन क्षमताओं की बढ़ाने वाली दवाएं प्रजनन हॉर्मोन को बढ़ाती हैं और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी मानव आबादी की स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतों को पूरा करने के लिए यूनानी चिकित्सा पद्धति को एक वैकल्पिक प्रणाली के रूप में मान्यता दी है। यही वजह है कि यूनानी चिकित्सा पद्धति को आज के दौर में भी असाध्य रोगों के लिए संजीवनी माना जाता है।
राजकीय यूनानी चिकित्सक डॉ. महमूद अहमद बताते हैं कि चिकित्सा के क्षेत्र में यूनानी चिकित्सा पद्धति की उपयोगिता को देखते हुए केंद्रीय आयुष मंत्रालय में केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद का गठन किया गया है।
यह एक स्वायत्त संगठन है,जो वर्ष 1978 में अपनी स्थापना के बाद से, यूनानी चिकित्सा में वैज्ञानिक अनुसंधान में लगा है। यही नहीं परिषद ने नैदानिक अनुसंधान, औषधि मानकीकरण, औषधीय पौधों के सर्वेक्षण और खेती और साहित्यिक अनुसंधान में महत्वपूर्ण प्रगति की है। दिल्ली में एलोपैथिक अस्पताल में आयुष केंद्रों के संयोजन की योजना के तहत स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, आरएमएल अस्पताल, डीडीयू अस्पताल, एआईआईए और सफदरजंग अस्पताल में कई यूनानी चिकित्सा केंद्र स्थापित किए गए हैं। इसके साथ ही देश भर में फैले अपने 23 अनुसंधान केन्द्रों के वैज्ञानिकों और तकनीकी जनशक्ति के प्रयासों से परिषद ने अपने पेटेंटों (संख्या 19) के लिए, नवीन अनुसंधान परिणामों और वैज्ञानिक प्रकाशनों के लिए विभिन्न क्षेत्रों से सराहना प्राप्त की है।
-लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।