आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर की ‘इबारत-17‘ में सजी मुशायरे की महफिल

- आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर की ओर से आयोजित हुआ बहुचर्चित उर्दू कविता का वार्षिक प्रतिष्ठा आयोजन ‘इबारत-17‘

- ‘अक्स हैं उनके  आसमानों पर, चांद तारे तो घर में रहते हैं...ः पदमश्री अलंकृत शीन काफ़ निजाम 

- ‘उसका चेहरा बनाने से पहले, फूल से मशवरा किया मैंने...ः शायर मदनमोहन दानिश

- ‘जंगलों को काट कर कैसा ग़ज़ब हमने किया, शहर जैसा एक आदमखोर पैदा कर लिया...ः फरहत एहसास

- ‘मैंने तो बाद में तोड़ा था उसे, आईना मुझपे हंसा था पहले...ः राजेश रेड्डी

- ‘घर से निकले, चैक गए फिर पार्क में बैठे, तन्हाई को जगह जगह बिखराया हमनें...ः शारिक कैफी
 
ग्वालियर ।  ‘अक्स हैं उनके  आसमानों पर, चाँद तारे तो घर में रहते हैं...।‘ 
‘तू अकेला है, बंद है कमरा, अब तो चेहरा उतार कर रख दे...।‘ यह रचना पदमश्री अलंकृत शीन काफ़ निजाम ने प्रस्तुत कर दर्शकों पर शेरो-सुखन का जादू चलाया। मौका था संस्थान के ‘नाद मुक्ताकाश‘ में आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर द्वारा आयोजित उर्दू कविता के वार्षिक प्रतिष्ठा अयोजन ‘इबारत-17‘ का।
आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर की अदबी पेशकश इस बार फिर अदब प्रेमियों के दिलों पर प्रेम के रंगों का जादू चला गई। उर्दू के महान कवि गालिब की स्मृति में आयोजित इबारत के इस 17वें अध्याय में उर्दू शायरी व हिंदी रचनाओं के मुख्तलिफ कविता प्रेम की झलक देखने और सुनने को मिली। मोहब्बत, प्रेम, निर्मल हास्य, सद्भाव और भारतीय स्वरों में रची-रंगी शेर-ओ-सुखन की ये शाम अद्भुत और रोचक रही। सबके चहेते प्रख्यात शायर, फिल्मकार, गीतकार और रचनाकार फरहत एहसास (नोएडा), राजेश रेड्डी, शारिक कैफी, मशहूर शायर मदन मोहन ‘दानिश‘ ने जब अपनी शायरी की तहें खोलीं तो नाद एम्फीथिटर की शाम दमक उठी। जैसे-जैसे वक्त गुजरता जा रहा था, वैसे-वैसे शेरो-सुखन का जादुई एहसास बढ़ता गया।
इबारत-17 में शेरो-शायरी से पहले ‘कविता कैसे सुनी जाए’ विषय की विवेचना की गई। इस मौके पर आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के फाउंडर चांसलर श्री रमाशंकर सिंह जी, चांसलर श्रीमती रूचि सिंह, प्रो-चांसलर डाॅ. दौलत सिंह चैहान, वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश उपाध्याय, डीन डाॅ. मुकेश कुमार पांडे, डीन एकेडमिक्स डॉ. रंजीत सिंह तोमर, डीएसडब्ल्यू त्रप्ति पाठक, केशव कंसाना, डॉ. आनंद कुमार पांडे सहित ग्वालियर शहर से बड़ी संख्या में आए श्रोतागण विशेष रूप से मौजूद रहे। कार्यक्रम का प्रारम्भिक संचालन डाॅ. कल्पना मिश्रा ने किया।

‘उसका चेहरा बनाने से पहले, फूल से मशवरा किया मैंने...ः शायर मदनमोहन दानिश
इबारत का आगाज ग्वालियर के ही ख्यातिनाम शायर मदनमोहन दानिश ने आयोजन का संयोजन-संचालन करते हुए अपने शेरो सुखन से सबको वाहवाही करने पर मजबूर किया। उन्होंने अपनी रचना पढ़ते हुए कहा कि
‘उसका चेहरा बनाने से पहले 
फूल से मशवरा किया मैंने...।‘
‘सबके जैसा मैं क्यों नहीं होता 
मेरी ख़ुद से यही लड़ाई है...।‘ 

‘जंगलों को काट कर कैसा ग़ज़ब हमने किया, शहर जैसा एक आदमखोर पैदा कर लिया...ः फरहत एहसास
आईटीएम यूनिवर्सिटी में आयोजित इबारत की इस महफिल को उर्दू शायरी की प्रख्यात शख्सियत फरहत एहसास ने परवान पर पहुंचाते हुए अपनी रचना पढ़ी... 
‘जंगलों को काट कर कैसा ग़ज़ब हमने किया, 
शहर जैसा एक आदमखोर पैदा कर लिया...।‘
‘मैं जब कभी उससे पूछता हूं कि यार मरहम कहां है मेरा, 
तो वक़्त कहता है मुस्कुरा कर जनाब तैयार हो रहा है...।‘

‘मैंने तो बाद में तोड़ा था उसे, आईना मुझपे हंसा था पहले...ः राजेश रेड्डी
नाद मुक्ताकाश में सजी इबारत में रचना के क्रम को आगे बढ़ाते हुए राजेश रेड्डी अपनी रचना पढ़ी
‘मैंने तो बाद में तोड़ा था उसे, 
आईना मुझपे हँसा था पहले...‘
‘बाद में मैंने बुलंदी को छुआ,  
अपनी नज़रों से गिरा था पहले...।‘  

‘घर से निकले, चैक गए फिर पार्क में बैठे, तन्हाई को जगह जगह बिखराया हमनें...ः शारिक कैफी
नाद मुक्ताकाश में सजी इबारत-17 की महफिल में आए शारिक कैफी ने अपनी रचना पढ़ते हुए कहा कि 
‘घर से निकले, चैक गए फिर पार्क में बैठे,  
तन्हाई को जगह जगह बिखराया हमनें...।‘
‘मौत ने सारी रात हमारी नब्ज़ टटोली, 
ऐसा मरने का माहौल बनाया हमने...।‘

आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर द्वारा आयोजित उर्दू कविता के वार्षिक प्रतिष्ठा अयोजन ‘इबारत-17‘ के समापन अवसर पर वाइस चांसलर प्रोफेसर योगेश उपाध्याय ने शायराना अंदाज में सभी का आभार जताया।
 

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