स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलकर जीवन का लक्ष्य बनाएं: सुप्रदीप्तानंद महाराज

ग्वालियर। क्या हम जीवन में सही पथ पर चल रहे हैं, हम क्यों जी रहे हैं, हम क्यों काम कर रहे हैं, इसके पीछे हमेशा एक उद्देश्य होता है। जीवन में किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए कर्म आवश्यक है। अपने कर्म से सेवा करते हुए आप हमेशा मुक्ति की ओर जाओगे। किसी भी क्षेत्र में आपका निपुण होना अनिवार्य है।जहां विनम्रता है वहां ज्ञान प्राप्त होगा। कर्म योग ही सेवा योग है।आनंद हमेशा विवेक में है। नैतिक मार्ग पर चलकर लक्ष्य हासिल करना चाहिए। बुद्धि के साथ-साथ मन का भी विकास होना चाहिए। हमेशा निःस्वार्थ बनो नि:स्वार्थ से ही आप लक्ष्य प्राप्ति कर सकते हो।मन स्थिर होना जरूरी है। तभी आप एक परिपक्व निर्णय ले सकते हैं। कर्मयोग सुनने का नहीं करने का विषय है। स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलकर जीवन का लक्ष्य बनाएं।यह बात बुधवार को स्वामी सुप्रदीप्तानंद जी महाराज ने जेयू के गालव सभागार में आयोजित हम एक कर्मयोगी कैसे बनें कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि कही। उन्होंने विवेकानंद जी और श्री कृष्ण जी के उपदेशों के माध्यम से कर्मयोग को समझाया।विशिष्ट अतिथि के रूप में समाजसेवी डॉ.राजेंद्र प्रसाद बांदिल व कुलसचिव अरूण सिंह चौहान उपस्थित रहे।वहीं अध्यक्षता जेयू के कुलगुरु प्रो.राजकुमार आचार्य ने की।प्रो.शांतिदेव सिसोदिया के स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कार्यक्रम के दौरान सभी अतिथियों को शॉल श्रीफल देकर सम्मानित किया गया। इसी क्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ.राजेंद्र प्रसाद बांदिल ने कहा कि कर्म तो हम करते हैं, चाहे वह अच्छा करें या गलत कर्म से हम बच नहीं सकते। कम सभी को करना है तो कर्म की बात सभी को समझना चाहिए। संकल्प एक ऐसी शक्ति है जो आपको कर्म के लिए प्रेरित करती है। संकल्प होगा जीवन में तभी आप कर्म की ओर आकर्षित होंगे। कर्म की जननी संकल्प है। इसलिए संकल्प का उदय होना हमारे जीवन में अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि संकल्प से ही कर्म की सिद्धि हो सकती। डॉ. अरूण सिंह चौहान ने कहा कि व्यक्ति का अच्छा व्यवहार ही कर्मयोगी की दिशा सुनिश्चित करता है।आध्यात्म हमारे जीवन को अनुशासित रखने के साथ साथ नियमानुसार जीवन जीने की शिक्षा भी देता है।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जेयू के कुलगुरु प्रो.राजकुमार आचार्य ने कहा कि विवेकानंद जी ने ईश्वर को पाने के लिए तीन मार्ग बताए कर्म मार्ग, ज्ञान मार्ग ,भक्ति मार्ग।कर्म से हम अपना जीवन सुधार सकते हैं। कर्म से हम दिनचर्या सुधार सकते हैं। संकल्प में कोई विकल्प नहीं होना चाहिए।व्यक्ति की असफलता यह प्रदर्शित करती है कि उसने कर्म अच्छे से नहीं किया।हर वह व्यक्ति कर्मयोगी हैं, जो अपने जीवन के सभी कार्य स्वयं कर रहा है। उन्होंने कहा कि निःस्वार्थ भाव से सामाजिक कार्य करना चाहिए। स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम विकास आदि कार्यों को अपने जीवन का लक्ष्य बनाएं। कुलगुरु ने कर्म के साथ योग को अपनाने की सलाह दी। कार्यक्रम का संचालन श्रुति सूद व आभार डॉ. अरूण सिंह चौहान ने व्यक्त किया।इस अवसर प्रो.जेएन गौतम, प्रो.एसएन मोहापात्रा,प्रो.हेमंत शर्मा,प्रो.राजेन्द्र खटीक,प्रो.एसके श्रीवास्तव,प्रो.एसके सिंह,प्रो.संजय कुलश्रेष्ठ ,डॉ.नवनीत गरूड़,डॉ.स्वर्णा परमार,डॉ.निमिषा जादौन,डॉ विमलेन्द्र सिंह राठौर,डॉ. सतेंद्र सिंह सिकरवार,डॉ.अशोक चौहान सहित शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

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