दीपावली 31 को ही मनाये

दीपावली उत्सव की तैयारी में एक नया प्रश्न यह आगया है कि दीपावली 31 अक्टूबर को मनाई जाये या 1 को उसका बड़ा सीधा सा उत्तर यही है कि दीपोत्सव का  पुण्य काल धन तेरस से आरम्भ हो जाता है जो दौज तक माना जाता है यहाँ महत्व पूर्ण यहाँ है कि शिव रात्रि की तरह दीपावली अमावस्या की अलग अलग घड़ी प्रहर काल  में रात्रि पूजन का विधान का त्योहार  है  जिससे मुक्ति भुक्ति शक्ति संपन्नता की आकांक्षा से की जाती है.
पूर्व वर्ष की तरह 31 अक्टूबर को 3.58 बजे शाम से अमावस्या का प्रवेश हुआ है और जो एक नवंबर को 6.21 तक शाम में खत्म हो जाना है दीपोत्सव का पूजन काल रात्रि में ही होता है सारे पूजा काल 31 अक्टूबर की रात्रि में ही आ रहे है. धनतेरस से लेकर दीपावली तक महालक्ष्मी एवं गणपति के तांत्रिक पूजन यंत्र का निर्माण किया जाता है उसकी पूजा का विधान धन तेरस छोटी दीपावली और दीपावली की रात्रि में पूर्ण पूजन स्थापना 31 की रात्रि में ही किया जाना निश्चित है जो वर्ष भर सकारात्मक धन वैभव प्रदान करता है उसकी पूजा पड़वा की रात्रि में संभव नहीं है. 

"मेरा आकाट्य मत है की दीपोत्सव का कार्यक्रम 31 को ही मनाया जाना श्रेष्ठ है, क्योकि 1 नवम्बर को रात्रि में पूजन की कोई बेला नहीं है. दीपावली काल रात्रि का त्योहार है ना कि गुड़ी पड़वा की तरह मनाया जाने वाला त्योहार."
जय माई
डॉ. ए के वाजपेयी

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