अपना देश-अपना त्योहार-अपनी भाषा : अपना गौरव- अपनी संस्कृति-अपनी पहचान


-    राजकुमार जैन, स्वतंत्र विचारक और लेखक

त्यौहार ऐसे सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रम होते हैं जो लोगों को कलात्मक अभिव्यक्ति, संगीत, भोजन और परंपराओं के विभिन्न रूपों का उत्सव मनाने और उनका आनंद लेने के लिए एक साथ लाते हैं। अभी त्योहारों का मौसम है, वातावरण मे रिश्तों की गर्मजोशी फैली हुई है, घरों की सफाई हो रही है, दूर रहने वाले घर लौटने की तैयारी कर रहे है, सबकी पसंद के पकवानों की सूची बनाई जा रही है, फिजाँ में एक मिठास सी घुली महसूस हो रही है, सब कुछ बड़ा भला भला सा लग रहा है। राखी मनाई जा चुकी हुई, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भी उत्सव पूर्वक उत्साह से मनाई गई है। गणेश चतुर्थी के साथ दस दिनी गणेशोत्सव मनाने की तैयारियां जोरों पर है,  नवदुर्गा उत्सव भी पूरे देश में मनाया जाएगा। अन्य त्योहारों के साथ इस त्योहारी मौसम के सबसे बड़े त्योहार दीपावली का इंतजार सभी परिवारों में वर्षभर शिद्दत से किया जाता है। ये सभी त्योहार हम सभी सम्पूर्ण उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं ।

वैसे भी भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है और यही त्योहार हमारी विभिन्नता और सांस्कृतिक एकता के  प्रतीक हैं। यूं तो हर त्योहार की एक अलग पहचान है जैसे बैसाखी का त्योहार किसानों का त्योहार है लेकिन भारत का हर नागरिक इस त्योहार की महत्ता को समझता है और अपने तौर पर मनाता भी है। त्यौहार किसी समुदाय, क्षेत्र या देश की की सांस्कृतिक पहचान में निहित होते हैं, तथा उसकी परंपराओं और विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने का काम करते हैं। त्यौहार सामुदायिक एकता और अपनेपन की भावना को बढ़ावा देते हैं। हम भारतवासी अपने सभी त्योहार सदियों से मनाते आ रहे हैं,  अंग्रेजों और अंग्रेजी के आने के पहले से, मुगलों और उर्दू के आने के पहले से। त्योहारों पर एक दूसरे को शुभकामनाएं प्रेषित करने की परंपरा भी सदियों पुरानी है और हम भारतीय यह कार्य या तो हिन्दी में या अपनी क्षेत्रीय भाषा में करते आए हैं।

शुभकामना यानि शुभ होने की कामना करना और इसी कामना के साथ शुभकामना देते समय शुभ होली, शुभ दीवाली, शुभ दशहरा, या त्योहार के नाम के साथ शुभकामनाएं कहा जाता था। लेकिन देखने में आ रहा है कि हमारे विशुद्ध भारतीय त्योहार आधुनिकता के अतिक्रमण से ग्रसित हो रहे है। शुभ दीपावली कब हैप्पी दीवाली में बदल गया किसी को कानो कान खबर तक नहीं हुई। इस दिन हम सभी एक दूसरे को शुभकामना देते हुए “हैप्पी दिवाली” बोलते हैं, सोशल मीडिया, वाट्सएप और संवाद के अन्य माध्यम  “हैप्पी दीवाली” के संदेशों से पट जाते है।

इस बदलाव के पक्ष में तर्क यह भी दिया जाता है कि विविधता में एकता वाले देश भारत में कोई भी एक सर्वमान्य भाषा नहीं है अतः अंग्रेजी को सर्वमान्य भाषा मान लेना चाहिए। लेकिन भारत सरकार द्वारा जारी अधिकृत आंकड़े बताते हैं कि देश की बहुत बड़ी आबादी अंग्रेजी नहीं पढ़ती, बोलती और समझती। भाषाओं के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 44% लोग हिंदी बोलते हैं, लेकिन पहली भाषा के रूप में अंग्रेजी केवल 259,678 लोगों द्वारा बोली जाती है, दूसरी भाषा के रूप में 82,717,239 लोगों द्वारा और तीसरी भाषा के रूप में 45,562,173 लोगों द्वारा बोली जाती है।

किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्र पहचान के साथ एक विशिष्ट भाषा भी जुड़ी होती है जो राष्ट्रीय एकता का मूलाधार होती है। भाषा एक राष्ट्र की जीवन शैली, आचार-विचार, सामाजिक-धार्मिक प्रवृत्तियों, सांस्कृतिक एकता तथा देशवासियों की चित्तवृत्तियों का परिचायक होती है।

हमारी संस्कृति में भाषा को माँ का दर्जा दिया गया है। महात्मा गांधी ने कहा था कि व्यक्ति के मानसिक विकास के लिए मातृभाषा का ज्ञान उतना ही आवश्यक है जितना कि एक शिशु के विकास के लिए माता का दूध। भाषा का सीधा संबंध संस्कार और सभ्यता से है और हिन्दी हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। आजादी मिलने के 75 वर्षों बाद यह देखने में आ रहा है कि अपनी माँ समान भाषा के प्रति हम लोगों का नजरिया और रवैया दोनों ही बेहद सामान्य और चलताऊ किस्म का हो गया है।

किसी क्षेत्र की संस्कृति, उसका इतिहास और उसका वर्तमान स्वरूप उस क्षेत्र के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा में परिलक्षित होता है। समुदाय का संस्कार, उसकी आत्मा और उसके प्राण उसकी अपनी भाषा में ही बसते हैं। भाषा उस संस्कृति की पहचान बन जाती है। भाषा हमारे सामाजिक ताने बाने का धागा है और राष्ट्रीय एकजुटता की इमारत की ईंट है। यह सत्य है कि एक ईंट निकालने से इमारत नहीं हिलती और एक धागा खींचने से वस्त्र नहीं उधड़ता। लेकिन यदि भारत की राष्ट्रीय एकता की इस बुलंद इमारत की ईंटों को एक एक कर निकाला जाएगा और भारत माता के लहलहाते आँचल का एक एक धागा धीरे धीरे खींचा जाएगा तो शनै: शनै: भारत नाम का यह मजबूत किला एक ना एक दिन ढह ही जाएगा।

हम अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने त्योहारों, अपने रीती रिवाजो और अपनी परम्पराओ पर गर्व करने की बजाय एक मूक दर्शक की तरह उदासीन भाव से उनका निरादर होते देखते रहते है। हमारे विद्यालय बच्चों को सिखाते है “शेक हैंड एंड से हैप्पी दीवाली”। जबकि हमें अपने बच्चों को शिक्षा देना चाहिए कि बड़ों के चरण स्पर्श करो और “शुभ-दीपावली” कहो, अपने दोस्तों को गले लगाओ और शुभ दीपावली बोलो, परिचितों को हाथ जोड़कर नमस्कार करो और शुभ दीपावली बोलो। अपनी परंपरा, अपनी संस्कृति का सम्मान करते हुए इस शुभ अवसर अपना त्योहार अपनी भाषा में ही मनाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करना बहुत आसान है।

चौदह बरस बाद प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन पर जन जन के उल्लास को प्रकट करने हेतु घर-चौबारे में दीप प्रज्वलित कर मनाई जाने वाली दीपावली के शुभ अवसर पर "Happy दिवाली" की इस हिंगलिश खिचड़ी की बजाय Happy Festival of Light कहना अधिक आधुनिक होगा या "शुभ दीपावली" कहना अधिक मिठास भरा होगा। यह निर्णय मैं आप पर छोड़ता हूं।

यह अंग्रेज और उनकी अंग्रेजी का विरोध नहीं है, यह तो अपनी संस्कृति को बचाने का एक नन्हा सा प्रयास मात्र है। भाषा और संस्कृति एक दूसरे के पूरक होते हैं। जब अंग्रेजी नहीं थी तब भी हमारे पुरखे त्योहार मनाते थे और शुभकामनाओं का आदान प्रदान भी करते थे। अपनी विरासत पर गर्व कीजिए और शुभ दीपावली को अपनाइये।

और एक बात जब आप शुभ कहते हैं तो यह एक लोक मंगल कामना से भरा भाव होता है और हैप्पी यानी खुशी एक नितांत निजी भाव है वस्तुत: अंग्रेजी भाषा में शुभ का समानार्थी शब्द और दीवाली या दीपावली की उत्सवी उल्लास की भावना से सराबोर समानार्थी शब्द खोजने में आपके पसीने छूट जायेंगे। दीपावली निजी ना होकर लोक मंगल का पर्व है। तो यहां शुभ दीपावली कहना ही उचित है ना कि हैप्पी दीवाली। जब हम शुभ की बात करेंगे तो हैप्पी तो बिना कहे ही हो जाएंगे।

यह भी कहा जाता है कि अरे यार क्या फर्क पड़ता है, इतनी गहराई में मत जाओ, इतना सर कौन खपाए या जाने भी दो यारों के इस तटस्थ और उदासीन भाव के साथ हम अपने सांस्कृतिक वैभव को बिसरा रहे हैं जिसका परिणाम हमारी भावी पीढ़ी भोगेगी।

भारतीयता का भाव हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है और यह प्रतीक एक एक शब्द को जोड़कर गढ़ा जाता है। दीपावली के इस महापर्व पर यह संकल्प लेना जरूरी है कि हम निजता से परे जाकर लोकमंगल की बात करेंगे। भगवान श्रीराम लोक मंगल के अधिष्ठाता हैं और हम उनके वंशज पूरे विश्व का शुभ चाहते हैं इसलिए बार बार, हर बार दीपावली शुभ हो कहना ही उचित है।

अंत में बिना किसी पूर्वाग्रह के कहना चाहूंगा कि अपना त्योहार मनाने के लिए भाषा का चुनाव करना पसंद है आपकी, मर्जी है आपकी, भावना है आपकी, देश है आपका, संस्कृति है आपकी और संतति भी है आपकी।

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