भागवत कथा वह परम तत्व है, जिसकी विराटता अपरिमित व असीम है – साध्वी वैष्णवी भारती
ब्रह्मज्ञान ही मात्र मानव को मानसिक व्याधियों से बचा सकता है – साध्वी वैष्णवी भारती
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गंगेश्वर बजरंगदास चौराहा, सेक्टर-9, अमिताभ पुलिया के पास, गोविंदपुर, महाकुंभ मेला, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में भव्य श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। जिस के अंर्तगत गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने माहात्मय के अंर्तगत बताया भगवान श्रीकृष्ण में जिनकी लगन लगी है उन भावुक भक्तों के हृदय में प्रभु के माधुर्य भाव को अभिव्यक्त करने वाला, उनके दिव्य रस का आस्वादन करवाने वाला यह सर्वोत्त्कृष्ट महापुराण है। जिसमें वर्णित वाक्य ज्ञान, विज्ञान, भक्ति एवं उसके अंगभूत साधन चतुष्टय को प्रकाशित करने वाला है तथा माया का मर्दन करने में समर्थ है। श्रीमद्भागवत भारतीय साहित्य का अपूर्व ग्रंथ है। यह भक्ति रस का ऐसा सागर है जिसमें डूबने वाले को भक्तिरूपी मणि-माणिक्यों की प्राप्ति होती है। भागवत कथा वह परमतत्व है जिसकी विराटता अपरिमित व असीम है। वह परमतत्व इसमें निहित है जिसके आश्रय से ही इस परम पावन भू-धाम का प्रत्येक कण अनुप्राणित और अभिव्यंजित हो रहा है। यह वह अखंड प्रकाश है जो मानव की प्रज्ञा को ज्ञान द्वारा आलोकित कर व्यापक चिंतन के द्वार खोल देता है। यह वह कथा है जो मानव के भीतरी दौर्ब्लयता के रूपान्तरण हेतु अविरल मन्दाकिनी के रूप में युगों युगों से प्रवाहित होती आ रही है।
आत्मदेव और धुंधुली की कथा में बताया कि दोनों में झगड़े होते हैं। ठीक वैसे जैसे आज पति-पत्नी में होते हैं। आज तो रिश्ते use and throw की तरह हो चुके हैं। extra marital affairs की समस्या समाज में बढ़ रही है। रिश्ते डिजिटल हो चुके हैं। emojis द्वारा भावनाओं का आदान प्रदान किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर तो मित्रों की लिस्ट बढ़ती जा रही है। पर परिवार के रिश्तों में दरार पड़ती जा रही है। हमें रिश्तों को बचाने के लिये सचेत होना होगा। क्योंकि विवाह को हमारी संस्कृति में विशेष स्थान दिया गया है। यहां हाथ पकड़ा जाता है, छोड़ा नहीं जाता। इसे पाणि ग्रहण कहते हैं।
उन्होंने बताया कि भागवत महापुराण की कथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। दुर्योधन ने पांड़वों का अधिकार वापिस देने से इन्कार कर दिया। हम जानते हैं कि युद्ध के रुप में भयानक विभीषिका का सामना करना पड़ा। कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन स्वजनों को सामने देख कर मोहाग्रस्त हो गया। रण करने से पूर्व ही शस्त्र का परित्याग कर दिया। श्री कृष्ण ने देखा कि उनके द्वारा चुना गया यंत्र निराशा, अवसाद, निरुत्साह से ग्रसित हो चुका है। उन्होने उसे अपने सामर्थ्य और बल से परिचित करवाया। विराट रुप का दर्शन करवाया एवं आत्मज्ञान से सराबोर किया। विचारणीय तथ्य यह है कि भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य, महारथी कर्ण सभी मिलकर भी दुर्योधन को बचा नहीं सके। उधर मात्र अकेले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को विजयी बना दिया। शस्त्र बल से श्रेष्ठ आत्मबल है यह भगवान ने समझाया। आज भी हम जीवन युद्ध में अर्जुन की तरह हताश हो जाते हैं। ऐसे में भौतिक संसाधन नहीं अपितु ब्रह्मज्ञान ही मात्र इन मानसिक व्याधियों से बचा सकता है।
संस्थान के कुम्भ शिविर की अधिक जानकारी हेतु आप संस्थान की इस वेबसाइट
www.djjs.org/kumbh पर भी जा सकते है।