बुद्धिमत्ता कृत्रिम नहीं हो सकती: राजकुमार जैन
इंदौर। एआई, चैटजीपीटी और डीपफेक नए दौर की मीडिया के नए हथियार है जो चुनौती और संभावना दोनों ही बने हुए हैं। इस समसामयिक और महत्वपूर्ण विषय पर रिसर्च जर्नल समागम और पत्रकारिता विभाग, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के मिडिया भवन में 9 फरवरी को किया गया। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलगुरु और विख्यात पत्रकार प्रो (डॉक्टर) के.जी. सुरेश थे एवम विशेष अतिथि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कुलगुरू डॉ. रेणु जैन थी।
डॉ सुरेश ने अपने उद्बोधन में बताया कि एआई पत्रकारिता के लिए वरदान के साथ साथ अभिशाप भी बन सकता है। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वो अपनी रचनात्मकता को बनाए रखें। हाल ही में आई एक फिल्म का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे हम मानव एक रोबोट के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ कर उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह प्यार करने लगते हैं जबकि रोबोट में भावनाए नहीं होती है, उसे जैसे प्रोग्राम किया जाता है वैसे ही वो व्यवहार करता है। कुलसचिव अजय वर्मा ने कहा कि आने वाले कल में पत्रकारिता के क्षेत्र में चैट जीपीटी जैसी अभिनव तकनीक की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविंद तिवारी ने बदलते दौर में पत्रकारिता के बारे में बोलते हुए बताया कि तकनीक का उपयोग एक सुधी पत्रकार की लेखनी को मजबूत और प्रखर बनाने में मदद करता है। लेखक लखन रघुवंशी ने अपने अनुभव बांटते हुए बताया कि डीप फेक के खतरों से कैसे निपटा जाए।
एआई के विषय विशेषज्ञ राजकुमार जैन ने अपने संक्षपित लेकिन सारगर्भित व्यक्तव्य में बताया कि पत्रकारिता के क्षेत्र में एआई का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाले समाचार और लेख लिखने के लिए, नालेज बेस बनाने के लिए, समाचार क्विज (प्रश्नोत्तरी) बनाने के लिए, मनचाही छवि या इंफोग्राफिक बनाने के लिए, लेख को आवाज में बदलने और आवाज को लेख में बदलने के लिए (ट्रांस्क्रिप्ट), व्यक्ति विशेष की अभिरूचि अबूसार वैयक्तिकृत (पर्सनल) समाचार पत्र बनाने के लिए, विस्तृत आलेखों का त्वरित सारांश लिखने के लिए, फ़ैक्ट चेक या तथ्यों की सत्यता का परीक्षण करने के लिए, ऑनलाइन चर्चाओं की निगरानी और अवांछित सामग्री की पहचान करने के लिए और चैट जीपीटी जैसे चैट बॉट से अपने काम की जानकारी हासिल करने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि एआई से डरने की आवश्यकता नहीं है जैसे कैमरे के चलन मे आने के बाद भी चित्रकार अप्रासंगिक नहीं हुए है उसी तरह एआई के आने के बाद भी मानव पत्रकारों की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी। विद्यार्थियों के प्रश्नों के जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि बाजार की ताकतों द्वारा अपने हितों की सिद्धि के लिए यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि एआई में भावनाए महसूस करने और प्रकट करने की क्षमता आ चुकी है जबकि मानवीय चेतना, भावना, मन, अनुभूति आदि के लिए कोई सेंसर नहीं बना है और सेंसर से मिले डाटा के बगैर एआई उस क्षेत्र में काम नहीं कर सकता। श्री जैन में मीडिया कर्मियों के लिए उपयोगी एआई टूल्स जैसे जास्पर, पिनपॉइंट, बीरबल, लॉंगशॉट, डीस्क्रिप्ट, नरेटीवा, क्विलबॉट, आर्टिकल-फोर्ज, मिडजर्नी आदि के बारे में भी जानकारी दी।
समागम के संपादक मनोज कुमार ने जानकारी दी कि साहित्य सेवा की उनकी जिद के चलते उनके अकेले के बलबूते पर समागम अपने प्रकाशन के 23 वर्ष पूर्ण कर 24वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, इस अवसर पर अतिथियों ने समागम के “बदलते दौर में मिडीया की भूमिका” विषय पर समर्पित विशेषांक का विमोचन भी किया। इस संगोष्ठी में शिक्षा और मीडिया के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले लोगों को तीन अलग अलग श्रेणी में सम्मान प्रदान किया गया। डॉक्टर बीएस विभूति, डॉक्टर सविता यादव को आचार्य चाणक्य समागम सम्मान, डॉक्टर सरोज चक्रधर को आचार्य चाणक्य समागम राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान, परेश उपाध्याय एवम तरुण सेन को आचार्य चाणक्य समागम शिक्षा सम्मान प्रदान किया गया। अंत में इस संगोष्ठी में पधारे सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का आभार प्रदर्शित करते हुए विभागाध्यक्ष सोनाली नरगुडे ने विद्यार्थियों को संदेश दिया कि तकनीक कितनी भी विकसित हो जाये मेहनत तो करना ही पड़ेगी।