-महलगांव करौलीमाता मंदिर में श्रीमद्देवी भागवत का सांतवा दिन
ग्वालियर। संसारी मनुष्य के साथ साधु-संतों के लिए माया से मुक्ति होना आसान नहीं हैं, लेकिन जो महामाया की साधना कर लेते हैं, उन्हें माया नहीं व्यापती है। नवरात्रि के अनुष्ठान से मां की आराधना शुरू करो और धीरे धीरे बढ़ते जाओ। मानव मन की ऐसी कोई कामना नहीं जो देवी अनुष्ठान से पूरी न हो।यह विचार महलगांव करौलीमाता एवं कुंवर महाराज मंदिर प्रागंण में आयोजित हो रही श्रीमद्देवी भागवत कथा के दौरान मां कनकेश्वरी देवी ने गुरूवार को व्यक्त किए। इस मौके पर महामंडलेश्वर कपिल मुनि महाराज ने व्यासपीठ का पूजन कराया।
देवी कनकेश्वरी ने कहा कि परमशक्ति के जिस मंगलरूप की आप साधना करना चाहते हैं तो उनके रूप के स्मरण करो। ढाई अक्षर के नाम को सांसों में जोड़कर जिस स्वरूप का आधार लेकर निराकार की मस्ती में जा सकते हैं। इसकी लिए मानवीय गुणों एवं संयम का अभ्यास करना होगा। जो आदतें खराब हैें, उन्हें धीरे धीरे छोड़ना होगा क्योंकि कोई भी आदत अचानक नही छूटती और कोई भी अच्छी आदत अचानक नहीं बनती है। उसका अभ्यास करना पड़ता है। स्वयं के सुधार और उन्नति का विचार ही साधना है। चेतना की उर्ध्वगति का प्रयास का नाम साधना है। अपनी चेतना का विकास खुद की करना पड़ता है। परमात्मा के मार्ग की गति इतनी पतली है, जिसका सफर खुद की तय करना पड़ता है। इस रास्ते से सुर और असुर दोनों जा सकते हैं,लेकिन संतों की साधना जगत कल्याण के लिए एवं असुरों की तपस्या खुद की स्वार्थ पूर्ति के लिए होती है। यानि तपस्या का फल अवश्य मिलता है। राक्षसों में संयम हैं, इसलिए वो तपस्या कर लेते हैं और देवताओं में संयम की कमी है, इसलिए वे घोर विपत्ति आने पर ही परमात्मा को भजते हैं। जिस प्रकार परमयोगी अपनी साधना के लिए कष्ट उटाता है, उसी प्रकार परमभोगी भी अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए तपस्या कर कष्ट उठाता है।
उन्होंने बताया कि जिसमें दमन की वृत्ति होती है वो दानव होता है। जो सिर्फ अपने हित की रक्षा के लिए काम करता है, वो राक्षस कहलाता है। मानव स्वभाव का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि जो सुख मनुष्य खुद नहीं भोग पाता है, उसे अपनी संतान में भोगना चाहता है,ये वासना का सूक्ष्म रूप है। यज्ञ दान से हमें जो प्राप्त साधनों से हमें जो मिलता है उसका हम भोग करने लगते हैं जिससे पुण्य क्षीण होने लगते हैं,लेकिन नारायण का बल उसी को प्राप्त होता है,जो अपने जीवन में संयम को अपनाकर तप करता है। महिषासुर की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि देवताओं की भोगवृत्ति से महिषासुर की हिंसकवृत्ति अधिक थी और प्रकृति सदा ऐसी वृत्तियों का संतुलन कर देती है। हमारा कर्तत्य है कि हम भी प्रकृति की रक्षा करें। जो नारायण का भजन करते हैं, जगदम्बा मां लक्ष्मी बनकर उन्हें सबकुछ प्रदान करती हैं। वो धर्म की स्थापना और विधर्मियों के नाश के लिए अवतार लेती है।
मां कनके श्वरी ने कहा कि संसार के सुख भोगने में कोई बुराई नहीं हैं। ईश्वर ने जो दिया है उसका उपयोग करो,लेकिन यदि इन्हें जीवन का लक्ष्य समझकर भोगोगे तो तुम्हारे भीतर भी महिषासुर( राक्षस) पैदा हो जाएगा। जीवन के हेतु चेतना की उर्ध्वगति होना चाहिए। देवशक्ति निष्क्रीय होती है तो असुरशक्ति मजबूत होती है। मां असुरों के साथ हमारे दुखों पर वार कर उन्हें नष्ट करती है।
देवी जगदम्बा के धाम के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि देवी का भवन अमृत के समुद्र के बीच में हैं, जहां वो स्वतंत्र रूप से क्रीडा करती है,लेकिन मूर्ख हो या विद्वान वहां नहीं पहुंच पाते हैं,लेकिन जो निर्दोष भाव से देवी को भजते हैं, उन्हें देवी के दिव्यधाम के दर्शन होते हैं। इस मौके पर अनेक संत महंतों के साथ भाजपा नेता देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर रामू, रामेश्वर सिंह भदौरिया, कनवर मंगलानी, महंज गिर्राज शर्मा, धमेंद्र शर्मा धन्नू, विवेक शर्मा, संगम भार्गव, विपिन शर्मा सहित सैकड़ों श्रद्धालु मौैजूद रहे।