बच्चों के समग्र विकास की नीति है, नयी शिक्षा नीति: अतुल कोठारी

(वंदना विश्वकर्मा, नयी दिल्ली)

प्रसिद्ध भारतीय शिक्षाविद  अतुल कोठारी शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव, शिक्षा बचाव आंदोलन समिति के राष्ट्रीय सह संयोजक और भारतीय भाषा मंच के सह संरक्षक हैं। वे पिछले १० वर्ष से शिक्षा बचाओ आंदोलन के जरिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकों में विकृतियों और विसंगतियों को दूर करने के लिए कार्य करते रहे हैं।  कोठारी 2००4 में , देश में शिक्षा बचाव आंदोलन की शुरुआत करने वालों में से एक हैं। शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति को अस्थाई रूप से शुरू हुए आंदोलन को स्थाई रूप देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन सब संस्थाओं और मंचों के माध्यम से भी वे निरंतर भारतीय भाषाओं का विषय उठाते रहे है।  कोठारी शिक्षा उत्थान पत्रिका के संपादक हैं , जिसके माध्यम से वे शिक्षा और शिक्षा में भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए प्रयास करते हैं। हमारी विशेष संवाददाता वंदना विश्वकर्मा ने शिक्षा में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और कौशल के विकास, उसे रोजगार परख बनाने तथा देश प्रेम की भावना को मजबूत करने आदि विषयों पर विस्तार पूर्वक चर्चा की ।

प्रश्न १-  हमारी शिक्षा व्यवस्था में एक विषय को अन्य विषयों के साथ जोड़कर बताने  का उपक्रम नहीं किया गया है जिस के कारण विद्यार्थी किसी भी विषय को भली भांति नहीं समझ पाता है। इस कमी को किस तरह दूर किया जा सकता है?

कोठारी -  नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस कमी को दूर करने का उपाय किया गया है। छात्रों के समग्र विकास के लिए इसमें समग्र सर्वांग एकांग दृष्टिकोण अपनाया गया  है। छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन के लिए अब उनके व्यक्तित्व के समग्र विकास को ध्यान में रखा जाएगा। विदेशों में छात्रों को अंकों के आधार पर दाखिला नही दिया जाता है ये देखा जाता है की पढ़ाई के अलावा खेलकूद ,सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में उसने क्या कार्य किए हैं वैसे प्राचीन काल में हमारे देश में भी छात्र की योग्यता का पैमाना अंकव्यवस्था नही थी । यह देखा जाता था की छात्रों की समझ कितनी विकसित है । हमारे देश में नालंदा और तक्षशिला जैसे बड़े विश्वविद्यालय थे जहां दाखिले से पहले छात्रों की योग्यता को जांच परख लिया जाता था। अधिकृत  व्यक्तियों से पहले विश्वविद्यालय का द्वारपाल ही उनसे सवाल जवाब कर लेता था और कुलगुरु को सूचना दे देता था फिर कुलगुरु साक्षात्कार के बाद तय करते थे की छात्र को दाखिला देना है की नहीं । अब हम फिर उसी दिशा में आगे बढ़ रहें है  और लिखित परीक्षा को ज्यादा महत्व न देकर धीरे - धीरे छात्रों के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं के विकास के महत्त्व पर जोर दिया जा रहा है।
शिक्षा नीति में व्यवहारिकता को भी प्रमुखता दी गई है । हर व्यक्ति नौकरी चाहता है लेकिन किसी भी सरकार के लिए सभी को नौकरी देना संभव नही है इसलिए शिक्षा नीति में कौशल विकास को स्थान दिया गया है ताकि छात्र अध्यन के दौरान ही किसी न किसी कौशल में पारंगत होकर  भविष्य में स्व रोजगार कर सके ।

प्रश्न २ -  शिक्षा से मनुष्य की चेतना का विकास होना चाहिए लेकिन देखने में यह आ रहा है  कि बच्चों की चेतना का स्तर दिन ब दिन गिरता जा रहा है। ऐसी स्थिति में बच्चों के व्यक्तित्व का समग्र विकास कैसे संभव है?

 कोठारी -  सुप्रसिद्ध साहित्यकार विद्या निवास मिश्र ने कहा था कि  व्यक्ति के समग्र विकास के लिए तीन बातें महत्व हैं - ज्ञान ,चरित्र और कौशल विकास । शिक्षा व्यवस्था में बच्चों के लिए लिखित परीक्षा से उत्तीर्ण होने की पद्धति नही, बल्कि ज्ञान प्राप्ति का लक्ष्य होना चाहिए। बच्चों को चरित्रवान बनाना चाहिए ताकि समाज के गरीबों और बुजुर्ग पीढ़ियों के प्रति उनके मन में संवेदना हो। छात्रों में कौशल को बढ़ावा देना चाहिए। 
गांधीजी कहा  करते थे - hand heart and head यानी हाथ में कौशल, दिल में संवेदना और दिमाग में ज्ञान हो। नई शिक्षा नीति में नैतिक और संवैधानिक मूल्यों तथा संस्कारों पर जोर दिया गया है। साथ ही लिखित परीक्षा से हटकर अन्य तरीकों से छात्रों की प्रगति के मूल्यांकन की बात शामिल की गई है।

प्रश्न ३ - छात्र स्कूली स्तर तक पढ़ाई करने के बाद भी यह तय नहीं कर पाते हैं कि भविष्य में क्या करना है ?इसमें शिक्षकों की कमी ज्यादा दिखाई देती है जो छात्रों का उचित मार्गदर्शन नही करते हैं। ऐसी स्थिती में शिक्षकों को जागरूक किया जाना चाहिए कि वे समय रहते छात्रों को भविष्य की दिशा के बारे में उचित जानकारी दे । आप का क्या विचार है  ?

  कोठारी - हमारे यहां शिक्षकों के प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था नही है हम आज भी अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था में काम कर रहे है क्योंकि व्यवस्था को कुछ दिनों में नही बदला जा सकता ।
इस व्यवस्था के कारण अध्यापकों को भी छात्रों के भविष्य के करियर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। अब नई शिक्षा नीति में ये व्यवस्था की गई है की अध्यापकों को इस बारे में पर्याप्त जानकारी हो ताकि वे छात्रों का उचित मार्गदर्शन कर सकें।

प्रश्न ४ - बच्चों में आजकल पश्चिम के अंधानुकरण की प्रवृत्ति बहुत प्रबल हो गई है भारतीयता के संस्कारों का लोप हो रहा है और इंटरनेट मोबाइल इत्यादि सूचना प्रौद्योगिकी के साधनों के कारण उनकी चेतना का दिनों दिन क्षरण हो रहा है , सरकार ने भी ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को मंजूरी दे दी है । बच्चे पढ़ाई से ज़्यादा इंटरनेट पर अन्य गतिविधियों में संलग्न हो रहे हैं। ऐसे में छात्रों का भविष्य क्या अंधकारमय दिखाई नहीं देता ?

 कोठारी -  अभी तक लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति चलती आ रही है। ब्रिटिश शासकों का उद्देश्य अपना काम करने के लिए क्लर्कों की एक फौज तैयार करना था। उन्हें प्रबुद्ध लोगों की ज्यादा जरूरत नहीं थी लेकिन अब इस शिक्षा पद्धति को बदल दिया गया है। जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं  नई शिक्षा नीति में बड़े बदलाव किए गए है। अब लिखित परीक्षा के साथ साथ अन्य तरीकों से छात्र की प्रगति का  आकलन किया जाएगा। व्यवहारिक ज्ञान और कौशल विकास पर जोर दिया गया है। भारतीय ज्ञान परंपरा को सम्मिलित किया गया है जिसे बच्चों में भारतीयता के संस्कार विकसित हो और उनमें राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत हो । वे अपने परिवार समाज और देश के लिए  सार्थक योगदान कर सकें। पहले ५ साल के पाठ्यक्रम में यह शामिल है । खेल और अन्य गतिविधियों के द्वारा बच्चे सीखें। जहां तक पश्चिम के अनुकरण की बात है हमे उनकी अच्छी बातों को अपनाना चाहिए न की बुरी बातों को । जब छात्रों में भारतीयता के संस्कार विकसित होने लगेंगे तब उनकी मानसिकता में बदलाव होने से वे पश्चिम के अंधानुकरण की प्रवृति को छोड़ देंगे । रही बात बच्चों  द्वारा इंटरनेट के गलत इस्तेमाल की  जब उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होने लगेगा तब वे खुद ब खुद इससे दूर होने लगेंगे ।
हमने मध्य प्रदेश के झबुआ जिले के एक स्कूल में बच्चों के कौशल विकास का कार्यक्रम शुरू किया है ।  स्थानीय जनजातीय लोग वहां गुड़िया बनाने का काम करते है और आदिवासी समाज से ही लोग उन्हें इस कौशल को सिखाने आते है  लेकिन इसके लिए वहां बाजार उपलब्ध नहीं है  इसके लिए उन्हें स्कूल की तरफ से पैसे दिए गए इस तरह जनजातीय लोगों को आमदनी हुई और स्कूली बच्चों का कौशल का विकास हुआ।

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