प्रभात झा के छोटे पुत्र की शादी,राष्ट्रपति प्रधानमंत्री भी पहुंचे
- 23-Jan-20
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वर्तमान
में मित्रता की परिभाषा ही बदल गयी है जबकि मित्रता स्वयं में एक
परिपूर्ण रिश्ता है यह बात माधव बाल निकेतन वृद्ध आश्रम में चल रही भगवत
कथा में सुप्रसिद्ध भागवताचार्य पं.श्री घनश्याम शास्त्री जी महाराज ने कही
भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को सच्ची मित्रता का पाठ पढ़ाया है। मनुष्य
को अपने कर्म नहीं भूलने चाहिए। सच्चे मित्र को श्रीकृष्ण और सुदामा की
तरह होना चाहिए मित्रता स्वयं में एक परिपूर्ण रिश्ता है। मित्रता से बड़ा
कोई संबंध नहीं है, लेकिन वर्तमान में मित्रता की परिभाषा बदल गई है, जबकि
भगवान श्रीकृष्ण ने संसार को सच्ची मित्रता का पाठ पढ़ाया है उन्होंने कहा
कि जब सुदामा भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका आए तो कृष्ण ने सुदामा के
फटे कपड़े नहीं देखे, बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। मनुष्य को अपना कर्म
नहीं भूलना चाहिए। अगर सच्चा मित्र है तो श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होना
चाहिए। जीवन में मनुष्य को श्रीकृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए
आगे शास्त्री जी ने कहा कि पूरी सृष्टि का सर्वोत्तम प्राणी मनुष्य है।
मनुष्य का शरीर धारण करने के लिए स्वयं देवता तक तरसते हैं। हम मानव योनि
में पैदा लिए हैं तो उसका मतलब ही नहीं समझते। मनुष्य की एक ऐसा प्राणी है
जो विवेकशील है
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