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करौली-धौलपुर : राजनीतिक दलों पर भारी पड़ रहा NOTA

* कांग्रेस-भाजपा के बीच परंपरागत मुकाबला, अन्य पार्टियों को "नोटा" से भी कम मिले वोट
-प्रदीप कुमार वर्मा
धौलपुर। चंबल के बीहड़ एवं डांग इलाके को मिलाकर बनी करौली-धौलपुर लोकसभा सीट विषम भौगोलिक परिस्थितियों के साथ-साथ कुछ अन्य रोचक तथ्यों को लेकर भी अपनी खासी पहचान रखती है। करौली- धौलपुर लोकसभा सीट पर बीते तीन संसदीय चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा है। तमाम कोशिशें के बावजूद भी अन्य राजनीतिक दल तथा निर्दलीय यहां अपनी पकड़ नहीं बना सके हैं। चुनावी परिणाम में इस बात को लेकर भी रोचकता है कि कई राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को मिले वोट की तुलना में "नोटा" में अधिक वोट पड़े हैं।
            वर्ष 2008 में देशव्यापी परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में हुए दूसरे संसदीय चुनाव में कुल 14 उम्मीदवार मैदान में थे।  इसी वर्ष पहली बार संसदीय चुनाव में "नोटा" का भी विकल्प मतदाताओं के सामने चुनाव आयोग ने रखा। इस चुनाव में भाजपा के डॉ. मनोज राजोरिया ने जीत दर्ज की। चुनाव में डॉ मनोज राजोरिया को 25.97 प्रतिशत के हिसाब से 4 लाख 2 हजार 407 वोट मिले। वहीं, कांग्रेस के लख्खीराम बैरवा को 24.21 प्रतिशत के हिसाब से 3 लाख 75 हजार 191 वोट मिले। इसी प्रकार बसपा के जीआर बरुआ को महज 1.61 प्रतिशत के हिसाब से 25 हजार 150, नेशनल पीपुल्स पार्टी के राम सिंह को 0.61 प्रतिशत यानी मात्र 9 हजार 458,ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के कमल सिंह को 0.47 प्रतिशत यानी 7 हजार 286 वोट मिले। 
          इस चुनाव के परिणाम में खास बात यह रही की पहली बार "नोटा" को लोगों ने जमकर समर्थन दिया और हालात ऐसे रहे की 8 प्रत्याशियों को "नोटा" से भी कम वोट मिले। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम के मुताबिक 0.38 प्रतिशत यानी 5 हजार 934 मतदाताओं ने "नोटा" का बटन दबाया। खास बात यह रही के "नोटा" को मिले वोट आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी घनश्याम सिंह को मिले कुल 0.24 प्रतिशत यानी  3726  वोट तथा निर्दलीय लक्ष्मीकांत को मिले कुल 0.31 प्रतिशत यानी 4767 से अधिक हैं।
                 इस चुनाव में पहली बार चलन में आए "नोटा" का असर ऐसा रहा कि निर्दलीय कंचनबाई को 0.19 प्रतिशत यानि 3 हजार 14,भारतीय युवा श​क्ति पार्टी के रमेश को 0.11 प्रतिशत यानि  एक हजार 629,निर्दलीय अशोक कुमार को 0.09 प्रतिशत यानि एक हजार 385, जागो पार्टी के फूल सिंह को 0.06 प्रतिशत यानि मात्र 951,जय महाभारत पार्टी के श्रीलाल खरे को 0.06 प्रतिशत यानि 922 तथा सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के प्रत्याशी धनराज बैरवा को 0.05 प्रतिशत यानि 745 वोट ही मिले। यह सभी प्रत्याशी नोटा के आंकडे तक भी नहीं पंहुच सके और चुनावी समर में "नोटा" भारी पडा।  
                             करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर वर्ष 2019 में हुए तीसरे चुनाव में भाजपा के डॉ. मनोज राजोरिया ने 52.69 प्रतिशत यानि 5 लाख 26 हजार 443 मत प्राप्त कर एक बार फिर से जीत दर्ज की। जबकि, उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस के संजय कुमार को 42.91 प्रतिशत यानि 4 लाख 28 हजार 761 वोट मिले तथा वह दूसरे स्थान पर रहे। चुनावी परिणाम के मुताबिक बसपा के रामकुमार को 02.57 प्रतिशत यानि 25 हजार 718 वोट ही मिल सके। खास बात यह रही कि "नोटा" ने यहां पर भी अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज कराई तथा नोटा को 0.73 प्रतिशत यानि 7 हजार 319 मतदाताओं ने पसंद किया। हालात ऐसे रहे कि अंबेडकर राइट पार्टी ऑफ इंडिया के जीतराम को 0.7 प्रतिशत यानि 7 हजार 20 वोट तथा प्रबुद्ध रिपब्लिकन पार्टी के विजय बाबू को 0.28 प्रतिशत यानि 2 हजार 783 वोट ही मिले। इस प्रकार यह दोंनों ही प्रत्याशी नोटा से भी फिसडडी साबित हुए।
            देश में 18 वीं लोकसभा के गठन के लिए हो रहे चुनाव में करौली-धौलपुर लोकसभा सीट पर इस बार मात्र चार प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें भाजपा की इंदु देवी जाटव, कांग्रेस के भजन लाल जाटव, बहुजन समाज पार्टी के विक्रम सिंह एवं निर्दलीय राम खिलाड़ी धोबी शामिल हैं। अब देखना यह है कि क्षेत्रीय दिग्गजों के दबदबे, स्थानीय एवं भारी प्रत्याशियों के आरोप-प्रत्यारोप, उपलब्ध संसाधनों और संगठन की मजबूती तथा स्थानीय मुद्दों के बीच इस बार चुनाव परिणाम में "नोटा" को कितना समर्थन मिलता है और कितने लोग वर्तमान प्रत्याशियों के प्रति अपनी नापसंद जताते हुए "नोटा" का बटन दबाते हैं।

2014 के आम चुनाव से शुरू हुआ है "नोटा"...
नोटा का उपयोग पहली बार 2013 के पांच राज्यों - छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में हुआ। इसके बाद में 2014 के आम चुनावों में "नोटा" का चलन शुरू किया गया था। "नोटा" या 'उपरोक्त में से कोई नहीं'  उन लोगों के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में उपलब्ध विकल्पों में से एक है जो किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहते हैं, ताकि वे अपने निर्णय की गोपनीयता का उल्लंघन किए बिना अस्वीकार करने के अपने अधिकार का उपयोग कर सकें। अब तक के नतीजों के मुताबिक नोटा ने देश के चुनावी परिदृश्य पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं डाला है , लेकिन यह असंतुष्ट मतदाताओं को भी मतदान के अधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केंद्र तक लाता है। इसके साथ ही मौजूदा प्रत्या​शियों के प्रति मतदाताओं की नापसंदगी भी जाहिर करता है।

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